यह सत्य है कि प्राचीन ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक योग गुरुओ व संत समाज द्वारा जो ज्ञान अर्जित किया है उनका आधार हमारा प्राचीन वेद विज्ञान ही है, यही बात योग के संबंध में भी सत्य है ,योग की विभिन्न विधाओं का चयन व्यक्तिगत रूचि के आधार पर ही होता है, किंतु चेतना समूह द्वारा प्रस्तुत समग्र ध्यान योग के मुख्य आधार बिंदु निम्न है :-
1)ध्यान योग को उसके समग्र स्वरूप में आत्मसात करना
2)ध्यान योग को सर्व सुलभ रूप में प्रस्तुत करना
3)ध्यान योग का वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक आधार स्पष्ट करना
4) ध्यान योग का दैनिक जीवन शैली के अनुरूप होना
5)ध्यान योग का शारीरिक व मानसिक स्थितियों के अनुकूल होना
6) ध्यान योग समय व परिस्थितियों के अनुकूल होना
7)ध्यान योग विभिन्न मनोशारीरिक रोगों के उपचार में सहायक होना
8)ध्यान योग ,मौसम व वातावरण के अनुरूप होना
मानव जीवन समग्र है तो मानवीय व्यक्तित्व भी समग्र होना चाहिए, मानवीय व्यक्तित्व के समग्र विकास और प्रगति का मार्ग महर्षि पतंजलि ने प्रशस्त किया है, जो अष्टांग योग के नाम से जाना जाता है,
इसके 8 अंग यम ,नियम, आसन ,प्राणायाम, प्रत्याहार ,धारणा, ध्यान और समाधि है ।इनमें से प्रथम पांच बाह्य योग और अंतिम तीन आंतरिक योग कहलाते हैं , वस्तुतः योग के आठ अंग मानवीय व्यक्तित्व विकास के व्यवस्थित चरण हैं ।
योग मानवीय व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक ,और आध्यात्मिक स्वरूप का समग्र रूप है।
वर्तमान समय में मनुष्य के जीवन में अनेक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक ,सामाजिक, और पारिवारिक समस्याओं का प्रवेश हुआ है ,विज्ञान द्वारा हमारे जीवन में आई अनेक सँसाधनो और सुविधाओं के बावजूद आज हमारा जीवन अधिक तनाव और विषाद पूर्ण हो गया है ,वर्तमान की समस्त चिकित्सा प्रणालियां भी इस भीषण समस्या का सामना नहीं कर पा रही है ,ऐसे में आज संपूर्ण विश्व के विशेषज्ञों की दृष्टि हमारे भारतीय प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा उद्घाटित योग विज्ञान की ओर देख रही है
उन्हें वर्तमान युग की समस्त समस्याओं का सार्थक और सक्षम समाधान योग विज्ञान में ही दिखाई दे रहा है ,और आज विश्व के समस्त वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा यही प्रमाणित किया है कि वर्तमान विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान भारतीय योग ,परंपराओं और जीवनशैली में ही निहित है,और यही कारण है कि आज योग आश्रम और मठों से निकलकर आम जीवन में प्रवेश कर गया है
जो योग केवल धर्म और आध्यात्म से जोड़कर देखा जाता था आज भौतिक संसाधनों और उपलब्धियों को प्राप्त लोग भी योग के महत्व और उपयोगिता को स्वीकार कर रहे हैं ,
वर्तमान में आम जीवन में भी योग ने अपनी विशेष स्थान बना लिया है किन्तु योग विज्ञान के प्रति आज समाज में अनेक भ्रांतियां प्रचलित हैं यथा अधिकांश लोग आसन और प्राणायाम को ही योग मान रहे हैं जबकि आसन व प्राणायाम तो योग के प्रारंभिक चरण है, योग तो व्यक्तित्व विकास की पूर्ण अवस्था है ।
योग के द्वारा सामान्य मानव से महामानव और महामानव से देव मानवता की यात्रा सहज ही संभव हो जाती है।
वर्तमान समय में योग के प्रचार प्रसार में अनेक संस्थाएं कार्य कर रही हैं, योग के इस महायज्ञ में हमारी और आपकी संस्था चेतना भी विगत 25 वर्षों से विशेष कर ध्यान योग के माध्यम से हमारी प्राचीन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना के जागरण का कार्य कर रही है ..
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